मै गांधीजी को क्यों मारता |
देबी प्रसाद चौधरी
लॉस एंगेल्स १२/२३/२०१९
क्योंकि महात्मा गाँधी के बात सब सुनते थे | खास कर हिन्दू सुनते थे , जिसके लिए हम चिन्तित थे | गांधीजी रामराज्य की बात करते थे , पर कभी भी राम मंदिर की बात नहीं की | बल्कि , वे भगवान राम ओर आल्हा में कोई फरक नहीं देखा | मै ओर मेरे गुरुओ ने जानते थे की जबतक हिन्दू एकजुट नहीं होंगे , ये धर्मं लुप्त होजायेगा | पर गांधीजी सोचते थे , जो धर्म सनातन काल से जिन्दा है , जिसको बादशाहो ने खत्म नहीं करपाया , उसको क्यों डरना चाहिए | वो हिन्दू धर्म का सार को अंगीकार कर लिया था ओर उसी तरह जीने लगे थे | सब उनके सुनते थे , हमारा कोई नहीं सुनता था ! उनकी mass फोल्लोविंग थी , हमारी नहीं | असल में , उनको फॉलो करने वाला हिन्दू majority थे , हम तो minority में थे |
गांधीजी अपने विचार में पक्के थे | उनको पूछा के - क्या राम राज्य बिना राम मंदिर से आ सकता है? वे कहने लगे , श्रीरामचरितमानस की अयोध्या कांड पढ़ो| जब श्रीराम वाल्मीकि जी को "मई कहा ठहरूंगा" पूछते , उत्तर में वाल्मीकि जी कहते है:
पूँछेहु मोहि की रहोऊ कहँ मैं पूछत सकुचउँ |
जहँ न होहू तहँ देहुं कही तुह्महि देखावौं ठाऊँ || १२७
You ask me: Where should I take up my residence? But I ask You with diffidence: tell me first the place where You are not; then alone I can show You a suitable place.
हमने कहा के बापू , जब हम strong नहीं होंगे अस्त्र सस्त्र नहीं रखेंगे , दुसमन को कैसे मरेंगे? गांधीजी , कहने लगे , श्रीरामचरितमानस के विभिसन गीता पढ़ो |
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥5॥
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें॥6॥
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर॥80 क॥
"Vibhasan was disconcerted when he saw Råvan mounted on a chariot and the Hero of Raghuís line without any. His great fondness for the Lord filled his mind with diffidence; and bowing to His feet he spoke with a tender heart: ìMy lord, You have no chariot nor any protection either for Your body (in the shape of armour) or for Your feet (in the shape of shoes). How, then, can You expect to conquer this mighty hero?î ìListen, friend:î replied the All-merciful, ìthe chariot which leads one to victory is quite another. Valour and fortitude are the wheels of that chariot, while truthfulness and good conduct are its enduring banner and standard. Even so strength, discretion, self-control and benevolence are its four horses, that have been joined to the chariot with the cords of forgiveness, compassion and evenness of mind. Adoration of God is the expert driver; dispassion, the shield and contentment, the sword. Again, charity is the axe; reason, the fierce lance and the highest wisdom, the relentless bow. A pure and steady mind is like a quiver; while quietude and the various forms of abstinence (Yamas) and religious observances (Niyamas) are a sheaf of arrows. Homage to the Bråhmaƒas and to oneís own preceptor is an impenetrable coat of mail; there is no other equipment for victory as efficacious as this. My friend, he who owns such a chariot of piety shall have no enemy
to conquer anywhere."
गांधीजी को विचार में जितना असंभव थी | हमको समझमें आगया था की हमारा कोई नहीं सुनेगा | गांधीजी भगवान राम को सच मानने लगे , पर हमको या सब में डाउट था | ये सब सच्चा नहीं है तो क्या backup plan होना चाहिए , हम उसमे धयान दिया | ना गांधीजी ना उनके फोल्लोवेर - जो मेजोरिटी में थे , उनको हम समझा पाए | हम तो चाहते थे गांधीजी भी कोई backup plan हिन्दुओं को बचाने के सोचे | पर वो ईश्वर में इतना बिस्वास करने लगे , की अपना समाज के ख्याल छोड़ के भगवत गीता ओर रामायण में लिखा हुआ चीजों में विस्वास करने लगे | हमे डर लगा |
गांधीजी बुजूर्ग थे , उनका पैर चुने का दिल करताथा | पर, उनको समझा न पाए | लगा के व जबतक रेहगे हमको कोई नहीं सुनेगा | एक ही रास्ता है उनको मर दू |
पर ये पता नहीं था की गांधीजी सारा विश्व में मानबता के विबेक का मुखपात्र बनचुकें | उनका सरीर को मरने से कुछ नहीं हुआ !
देबी प्रसाद चौधरी
लॉस एंगेल्स १२/२३/२०१९
क्योंकि महात्मा गाँधी के बात सब सुनते थे | खास कर हिन्दू सुनते थे , जिसके लिए हम चिन्तित थे | गांधीजी रामराज्य की बात करते थे , पर कभी भी राम मंदिर की बात नहीं की | बल्कि , वे भगवान राम ओर आल्हा में कोई फरक नहीं देखा | मै ओर मेरे गुरुओ ने जानते थे की जबतक हिन्दू एकजुट नहीं होंगे , ये धर्मं लुप्त होजायेगा | पर गांधीजी सोचते थे , जो धर्म सनातन काल से जिन्दा है , जिसको बादशाहो ने खत्म नहीं करपाया , उसको क्यों डरना चाहिए | वो हिन्दू धर्म का सार को अंगीकार कर लिया था ओर उसी तरह जीने लगे थे | सब उनके सुनते थे , हमारा कोई नहीं सुनता था ! उनकी mass फोल्लोविंग थी , हमारी नहीं | असल में , उनको फॉलो करने वाला हिन्दू majority थे , हम तो minority में थे |
गांधीजी अपने विचार में पक्के थे | उनको पूछा के - क्या राम राज्य बिना राम मंदिर से आ सकता है? वे कहने लगे , श्रीरामचरितमानस की अयोध्या कांड पढ़ो| जब श्रीराम वाल्मीकि जी को "मई कहा ठहरूंगा" पूछते , उत्तर में वाल्मीकि जी कहते है:
पूँछेहु मोहि की रहोऊ कहँ मैं पूछत सकुचउँ |
जहँ न होहू तहँ देहुं कही तुह्महि देखावौं ठाऊँ || १२७
You ask me: Where should I take up my residence? But I ask You with diffidence: tell me first the place where You are not; then alone I can show You a suitable place.
हमने कहा के बापू , जब हम strong नहीं होंगे अस्त्र सस्त्र नहीं रखेंगे , दुसमन को कैसे मरेंगे? गांधीजी , कहने लगे , श्रीरामचरितमानस के विभिसन गीता पढ़ो |
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा। देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा। बंदि चरन कह सहित सनेहा॥1॥
नाथ न रथ नहि तन पद त्राना। केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना। जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥2॥
सौरज धीरज तेहि रथ चाका। सत्य सील दृढ़ ध्वजा पताका॥
बल बिबेक दम परहित घोरे। छमा कृपा समता रजु जोरे॥3॥
ईस भजनु सारथी सुजाना। बिरति चर्म संतोष कृपाना॥
दान परसु बुधि सक्ति प्रचंडा। बर बिग्यान कठिन कोदंडा॥4॥
अमल अचल मन त्रोन समाना। सम जम नियम सिलीमुख नाना॥
कवच अभेद बिप्र गुर पूजा। एहि सम बिजय उपाय न दूजा॥5॥
सखा धर्ममय अस रथ जाकें। जीतन कहँ न कतहुँ रिपु ताकें॥6॥
महा अजय संसार रिपु जीति सकइ सो बीर।
जाकें अस रथ होइ दृढ़ सुनहु सखा मतिधीर॥80 क॥
"Vibhasan was disconcerted when he saw Råvan mounted on a chariot and the Hero of Raghuís line without any. His great fondness for the Lord filled his mind with diffidence; and bowing to His feet he spoke with a tender heart: ìMy lord, You have no chariot nor any protection either for Your body (in the shape of armour) or for Your feet (in the shape of shoes). How, then, can You expect to conquer this mighty hero?î ìListen, friend:î replied the All-merciful, ìthe chariot which leads one to victory is quite another. Valour and fortitude are the wheels of that chariot, while truthfulness and good conduct are its enduring banner and standard. Even so strength, discretion, self-control and benevolence are its four horses, that have been joined to the chariot with the cords of forgiveness, compassion and evenness of mind. Adoration of God is the expert driver; dispassion, the shield and contentment, the sword. Again, charity is the axe; reason, the fierce lance and the highest wisdom, the relentless bow. A pure and steady mind is like a quiver; while quietude and the various forms of abstinence (Yamas) and religious observances (Niyamas) are a sheaf of arrows. Homage to the Bråhmaƒas and to oneís own preceptor is an impenetrable coat of mail; there is no other equipment for victory as efficacious as this. My friend, he who owns such a chariot of piety shall have no enemy
to conquer anywhere."
गांधीजी को विचार में जितना असंभव थी | हमको समझमें आगया था की हमारा कोई नहीं सुनेगा | गांधीजी भगवान राम को सच मानने लगे , पर हमको या सब में डाउट था | ये सब सच्चा नहीं है तो क्या backup plan होना चाहिए , हम उसमे धयान दिया | ना गांधीजी ना उनके फोल्लोवेर - जो मेजोरिटी में थे , उनको हम समझा पाए | हम तो चाहते थे गांधीजी भी कोई backup plan हिन्दुओं को बचाने के सोचे | पर वो ईश्वर में इतना बिस्वास करने लगे , की अपना समाज के ख्याल छोड़ के भगवत गीता ओर रामायण में लिखा हुआ चीजों में विस्वास करने लगे | हमे डर लगा |
गांधीजी बुजूर्ग थे , उनका पैर चुने का दिल करताथा | पर, उनको समझा न पाए | लगा के व जबतक रेहगे हमको कोई नहीं सुनेगा | एक ही रास्ता है उनको मर दू |
पर ये पता नहीं था की गांधीजी सारा विश्व में मानबता के विबेक का मुखपात्र बनचुकें | उनका सरीर को मरने से कुछ नहीं हुआ !